Thursday, 1 March 2012

पैदा कर


नहीं  कहता  हूँ  मैं  तुझसे  कि  रातों  रात  पैदा कर |
भले  ही  देर  हो  जाए   सुखन  में  बात    पैदा  कर ||

सुकूँ हासिल नहीं  होता  कभी  पड़  कर  फ़सादों में |
अगर कुछ कर सके तो अम्न के हालात  पैदा  कर ||

गुज़ारे   थे   कभी   जो   बैठ   कर   तेरी  पनाहों  में |
ज़रा फिर दिल लुभाने को वही  लम्हात   पैदा  कर ||

लगेगा वक़्त शायद और कुछ उड़ने में तुझको बस |
ज़मीं पे चलने की ख़ुद में अभी  औक़ात पैदा  कर ||

कभी गुमराह हो  जाएँ  न  देखो   क़ौम की  नस्लें |
अभी से इनके भीतर प्यार के जज़्बात  पैदा  कर ||

खटकते हैं ये कानों को  बहुत  ही  आज   के  नग़्मे |
सुरीली   तान  वाले  दिलकुशा  नग़्मात  पैदा  कर ||

किसी दिन मैं भी छू पाऊँ फ़लक की उस बलंदी को |
मेरे   मौला   मेरे  किरदार   में   वो  बात  पैदा  कर ||

गुनाहों   से   न   जिनका  वास्ता  कोई  हमेशा  हो |
हिफ़ाज़त जो करे सब की वो एसे  हाथ  पैदा  कर ||

दुआ मांगू  ख़ुदा तुझसे हमेशा  रात  हो  या  दिन |
हमेशा हुस्न को   उसकी  वफ़ा के साथ पैदा  कर ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी    

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