नहीं कहता हूँ मैं तुझसे कि रातों रात पैदा कर |
भले ही देर हो जाए सुखन में बात पैदा कर ||
सुकूँ हासिल नहीं होता कभी पड़ कर फ़सादों में |
अगर कुछ कर सके तो अम्न के हालात पैदा कर ||
गुज़ारे थे कभी जो बैठ कर तेरी पनाहों में |
ज़रा फिर दिल लुभाने को वही लम्हात पैदा कर ||
लगेगा वक़्त शायद और कुछ उड़ने में तुझको बस |
ज़मीं पे चलने की ख़ुद में अभी औक़ात पैदा कर ||
कभी गुमराह हो जाएँ न देखो क़ौम की नस्लें |
अभी से इनके भीतर प्यार के जज़्बात पैदा कर ||
खटकते हैं ये कानों को बहुत ही आज के नग़्मे |
सुरीली तान वाले दिलकुशा नग़्मात पैदा कर ||
किसी दिन मैं भी छू पाऊँ फ़लक की उस बलंदी को |
मेरे मौला मेरे किरदार में वो बात पैदा कर ||
गुनाहों से न जिनका वास्ता कोई हमेशा हो |
हिफ़ाज़त जो करे सब की वो एसे हाथ पैदा कर ||
दुआ मांगू ख़ुदा तुझसे हमेशा रात हो या दिन |
हमेशा हुस्न को उसकी वफ़ा के साथ पैदा कर ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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