नुस्ख़ा मेरा आप ये भी आज़मा कर देखिये |
एक दिन के ही लिए बस घास खा कर देखिये ||
रिश्ते -नाते छीन लेते हैं कभी दिल का सुकून |
कुछ पलों को ही सही उन को भुला कर देखिये ||
जब कभी बेज़ार हो जाए ज़माने से ये दिल |
आप फ़ौरन ही हमारे पास आ कर देखिये ||
कर रहा हो जब तुम्हे कोई मुसलसल दरगुज़र |
मत पड़ो पीछे उसी के दूर जा कर देखिये ||
पेट की ताक़त पता चल जायेगी सब आपके |
खा रहा जो एक मुफ़लिस वो चबा कर देखिये ||
है हरे के भी सिवा सावन के अंधों कुछ यहाँ |
आँख से ग़फ़लत भरा पर्दा हटा कर देखिये ||
छोड़ देते हो हक़ारत से जिसे तुम देख कर |
चार पल ही उस दलित के घर बिता कर देखिये ||
कुछ कमी होगी कहीं तो वो पता चल जायेगी |
हो सके तो इस ग़ज़ल को गुनगुना कर देखिये ||
बेसबब आती नहीं रिश्तों में तल्ख़ी यूँ कभी |
ख़ुद में भी अब आप कुछ बदलाव ला कर देखिये ||
राम बन कर आइये शबरी बनूंगा आपकी |
झाड़ियों पर कुछ लगे हैं बेर खा कर देखिये ||
आपकी ख़ातिर ही क्या अच्छा है सब के ही लिए |
आप जब भी देखिये बस मुस्कुरा कर देखिये ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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