Sunday, 4 March 2012

नुस्ख़ा मेरा


नुस्ख़ा  मेरा  आप   ये  भी  आज़मा कर देखिये |
एक दिन के ही लिए बस घास खा  कर  देखिये ||

रिश्ते -नाते छीन  लेते हैं  कभी दिल का सुकून |
कुछ पलों को ही सही उन को भुला कर देखिये ||

जब  कभी  बेज़ार   हो जाए ज़माने  से ये दिल |
आप  फ़ौरन  ही  हमारे  पास  आ  कर  देखिये ||

कर रहा हो जब तुम्हे कोई मुसलसल  दरगुज़र |
मत  पड़ो  पीछे   उसी  के  दूर  जा  कर  देखिये ||

पेट  की  ताक़त  पता  चल  जायेगी सब आपके |
खा रहा जो एक मुफ़लिस वो  चबा  कर  देखिये ||

है  हरे  के  भी  सिवा  सावन के अंधों  कुछ  यहाँ |
आँख  से  ग़फ़लत   भरा  पर्दा  हटा  कर  देखिये ||

छोड़  देते  हो  हक़ारत   से  जिसे  तुम  देख  कर |
चार पल ही उस दलित के घर बिता  कर देखिये ||

कुछ कमी होगी कहीं तो  वो  पता  चल  जायेगी |
हो सके तो इस ग़ज़ल को गुनगुना  कर  देखिये ||

बेसबब  आती  नहीं  रिश्तों  में  तल्ख़ी   यूँ  कभी |
ख़ुद में भी अब आप कुछ बदलाव ला कर देखिये ||

राम   बन   कर   आइये   शबरी   बनूंगा  आपकी |
झाड़ियों  पर  कुछ  लगे  हैं  बेर  खा  कर   देखिये ||

आपकी ख़ातिर ही क्या अच्छा है सब के ही लिए |
आप जब भी  देखिये  बस  मुस्कुरा  कर  देखिये ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 


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