Sunday, 18 March 2012

मासूम सी बातें


भरम   पैदा   करें   मन  में   तेरी  मासूम   सी  बातें |
इन्हें मैं प्यार की समझू या समझू  ख़ाब   की  बातें ||

तुम्हारी  ही  तरफ़  से  अब  तो  बस कोई इशारा हो |
अरे  मैंने  तो  कब  की  सब  तुम्हारी  मान ली बातें ||

कभी समझा नहीं पाया मैं कुछ भी तुमको अच्छे से |
हमेशा   बीच   में    ही   तुमने   मेरी  काट  दी  बातें ||

हमें  अच्छी  नहीं लगती है ये आपस  की  तू -तू -मैं |
चलो   हम  चुप  रहेंगे   कीजिएगा   आप   ही  बातें ||

बड़ा ही मुख़्तसर है वक़्त क़ीमत को समझ इसकी |
न  कर  बेकार  की  बातें तू अब कर काम की बातें ||

हमारे  घर  के झगडे घर के अन्दर ही  रहें  अच्छा |
ज़माने  को  बता कर क्या मिलेगा  आपसी   बातें ||

बड़ा  अच्छा तुम्हारा दिन गया है आज तो ‘सैनी ’|
उन्होंने  फोन  पर  तो  आज तुमसे ख़ूब की बातें ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी          
   

No comments:

Post a Comment