भरम पैदा करें मन में तेरी मासूम सी बातें |
इन्हें मैं प्यार की समझू या समझू ख़ाब की बातें ||
तुम्हारी ही तरफ़ से अब तो बस कोई इशारा हो |
अरे मैंने तो कब की सब तुम्हारी मान ली बातें ||
कभी समझा नहीं पाया मैं कुछ भी तुमको अच्छे से |
हमेशा बीच में ही तुमने मेरी काट दी बातें ||
हमें अच्छी नहीं लगती है ये आपस की तू -तू -मैं |
चलो हम चुप रहेंगे कीजिएगा आप ही बातें ||
बड़ा ही मुख़्तसर है वक़्त क़ीमत को समझ इसकी |
न कर बेकार की बातें तू अब कर काम की बातें ||
हमारे घर के झगडे घर के अन्दर ही रहें अच्छा |
ज़माने को बता कर क्या मिलेगा आपसी बातें ||
बड़ा अच्छा तुम्हारा दिन गया है आज तो ‘सैनी ’|
उन्होंने फोन पर तो आज तुमसे ख़ूब की बातें ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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