जो कुछ कहा ग़लत कहा गया मेरे ख़िलाफ़ |
वैसे भी वक़्त इश्क़ में रहा मेरे ख़िलाफ़ ||
थामी जो मैंने रोशनी की हाथ में मशाल |
इक ख़ास तबक़ा हो गया खड़ा मेरे ख़िलाफ़ ||
दो चार दोस्तों को अपना ग़म बता दिया |
तब से हरेक शख़्स ही हुआ मेरे ख़िलाफ़ ||
आता है मुझको याद आज वो हसीन वक़्त |
जब मैं था तेरे साथ तू न था मेरे ख़िलाफ़ ||
मुज़रिम तो अपना आपने बना लिया मुझे |
क्या कुछ सबूत आज तक मिला मेरे ख़िलाफ़ ||
करते रहे भरोसा आप तो रक़ीब का |
उसने कहा जो मान वो लिया मेरे ख़िलाफ़ ||
करिये न आप यूं पहेलियों में गुफ़्तगू |
अब खुल के कीजिएगा तज़किरा मेरे ख़िलाफ़ ||
आओ समझ ले बैठ कर ख़याल बाहमी |
जायज़ नहीं है बोलना सदा मेरे ख़िलाफ़ ||
ज़िद्दी अगर हैं आप तो मैं भी बड़ा हठी |
जो जी में आये कीजे फ़ैसला मेरे ख़िलाफ़ ||
आये हैं ज़िंदगी में एसे पल भी बारहा |
अच्छा किया मगर हुआ बुरा मेरे ख़िलाफ़ ||
सैनी को मिल रही है किस कुसूर की सज़ा |
उसने कभी भी कुछ नहीं किया मेरे ख़िलाफ़ ||
डा०सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment