Thursday, 15 March 2012

मेरे ख़िलाफ़


जो कुछ कहा ग़लत  कहा  गया  मेरे  ख़िलाफ़ |
वैसे   भी   वक़्त  इश्क़  में  रहा  मेरे  ख़िलाफ़ ||

थामी  जो  मैंने   रोशनी   की  हाथ  में  मशाल |
इक ख़ास तबक़ा  हो  गया  खड़ा मेरे  ख़िलाफ़ || 

दो  चार   दोस्तों  को  अपना  ग़म  बता  दिया |
तब   से   हरेक शख़्स   ही  हुआ मेरे  ख़िलाफ़ || 

आता  है  मुझको  याद  आज  वो  हसीन वक़्त |
जब  मैं  था  तेरे  साथ  तू  न  था मेरे  ख़िलाफ़ ||  

मुज़रिम  तो  अपना  आपने  बना  लिया  मुझे |
क्या कुछ सबूत आज तक मिला मेरे ख़िलाफ़ ||  

करते   रहे    भरोसा   आप   तो   रक़ीब    का |
उसने  कहा जो  मान  वो  लिया मेरे  ख़िलाफ़ ||  

करिये   न   आप   यूं   पहेलियों   में    गुफ़्तगू |
अब खुल के कीजिएगा तज़किरा मेरे ख़िलाफ़ ||   

आओ   समझ   ले  बैठ  कर  ख़याल   बाहमी |
जायज़  नहीं  है  बोलना   सदा  मेरे  ख़िलाफ़ ||  

ज़िद्दी  अगर  हैं  आप  तो  मैं  भी   बड़ा  हठी |
जो  जी  में आये कीजे फ़ैसला  मेरे ख़िलाफ़ ||   

आये  हैं  ज़िंदगी  में   एसे  पल   भी  बारहा |
अच्छा किया मगर हुआ  बुरा मेरे  ख़िलाफ़ ||  

सैनी को मिल रही है किस  कुसूर  की  सज़ा |
उसने कभी भी कुछ नहीं किया मेरे ख़िलाफ़ ||  

डा०सुरेन्द्र  सैनी   
  

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