Wednesday, 14 March 2012

आपकी ख़ातिर


न पीने की क़सम जब से उठा ली  आपकी ख़ातिर |
बड़ी मुश्किल में अपनी जान डालीआपकी ख़ातिर || 

कहीं  दामन  पे  कोई   हर्फ़   आजाये  न  बातों  से |
ज़बां  दाँतों  तले  हमने   दबाली  आपकी  ख़ातिर ||  

हमेशा   आपके   आगे   करूँ  औरों  की  अनदेखी |
तभी  तो  मुझको देते लोग गाली आपकी ख़ातिर ||  

अगरचे काम इतना है  कि फ़ुर्सत ही नहीं मिलती |
मगर   बैठा  मिलूंगा रोज़  ख़ाली आपकी  ख़ातिर ||   

रक़ीबों  का   हमें  डर था तो हमने छोड़   दी  धरती |
चलो  अब  चाँद पर दुन्या बसाली  आपकी ख़ातिर ||  

मुझे   दीवानगी    ने   इश्क़ की  बेहाल   कर  डाला |
लगूं मैं  आजकल  सबको  मवाली आपकी ख़ातिर ||  

गली में  जब  मेरी  आते  हो  झगडा लोग  करते  हैं |
कभी  ख़ंजर  कभी  चलती  दुनाली आपकी ख़ातिर ||  

सितम एसा न करना टूट कर इक दिन बिखर जाए |
नयी दिल में जो अब उम्मीद पाली आपकी ख़ातिर ||  

तरसता  हूँ   चले  आओ  सभी  रस्तें  खुले  घर  के |
सभी  रस्तों  पे आँखें  हैं  बिछाली आपकी  ख़ातिर ||  

तुम्हारी  सम्त जायेगी न अब तो एक भी फ़त |
सभी  सीने  से जो हमने लगाली आपकी  ख़ातिर ||   

किसी के दर पे माथा आज तक टेका नहीं लेकिन |
बनेगा सैनी हर दर पर सवाली  आप की  ख़ातिर ||  

डा० सुरेन्द्र  सैनी 
    

No comments:

Post a Comment