बैठा हो हुस्न सामने रानाइयाँ लिए |
फिर तो ग़ज़ल कहूंगा मैं गहराइयाँ लिए ||
आबाद सबके आशियाँ तो कब के हो गए |
मैं जी रहा हूँ आज भी तन्हाईयाँ लिए ||
हालाकि उसने शान से सब को विदा किया |
महफ़िल से उसकी मैं चला रुस्वाइयाँ लिए ||
तैयार है नहीं कोई सुनने को एक भी |
मैं लाख़ घूमता फिरूं सच्चाइयाँ लिए ||
मिल जायेंगे हज़ार तुम्हे झट तमाशबीन |
निकलोगे जब भी राह में अंगडाइयां लिए ||
वो सोचते हैं क्या मेरे बारे में क्या पता |
मिलता रहा हूँ उनसे मैं अच्छाइयां लिए ||
कुदरत का खेल देखिये होती नहीं जुदा |
चलता है आदमी सदा परछाइयाँ लिए ||
दिखने में तो लगे बड़ा सीधा सा आदमी |
मानी हैं उसकी बात के ऊँचाइयाँ लिए ||
इलज़ाम आप पर लगा तो लग गया जनाब |
अब उम्र भर ही घूमिये अच्छाइयां लिए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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