Thursday, 8 March 2012

बैठा हो हुस्न


बैठा   हो   हुस्न   सामने   रानाइयाँ  लिए |
फिर तो ग़ज़ल  कहूंगा मैं गहराइयाँ लिए ||

आबाद सबके आशियाँ तो कब के  हो  गए |
मैं  जी  रहा  हूँ  आज  भी  तन्हाईयाँ  लिए ||

हालाकि उसने शान से सब को विदा  किया |
महफ़िल से उसकी मैं चला रुस्वाइयाँ लिए ||

तैयार   है   नहीं  कोई  सुनने  को  एक  भी |
मैं   लाख़   घूमता   फिरूं  सच्चाइयाँ  लिए ||

मिल जायेंगे हज़ार तुम्हे  झट  तमाशबीन |
निकलोगे जब भी राह में अंगडाइयां लिए ||

वो  सोचते हैं क्या मेरे बारे  में  क्या  पता |
मिलता रहा हूँ उनसे  मैं अच्छाइयां लिए ||

कुदरत  का  खेल  देखिये  होती नहीं  जुदा |
चलता  है  आदमी  सदा  परछाइयाँ  लिए ||

दिखने  में  तो  लगे  बड़ा सीधा सा आदमी |
मानी  हैं  उसकी  बात  के  ऊँचाइयाँ  लिए ||

इलज़ाम आप पर लगा तो लग गया जनाब |
अब  उम्र  भर  ही  घूमिये  अच्छाइयां लिए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी       

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