उनके जो आगे अपनी ये दुआ क़ुबूल होती |
क़िस्मत पे क्यूँ हमारी गर्दिश की धूल होती ||
कभी सामने किसी के झुकता न सर हमारा |
ग़र ज़िंदगी हमारी कुछ बाउसूल होती ||
ये नसीब बन के दुश्मन मेरे साथ ग़र न चलता |
मुझसे न बदहवासी में कोई भी भूल होती ||
यही आर्ज़ू हमेशा हर सांस में रही है |
मेरी ज़ात उनके जूड़े का महकता फूल होती ||
वो अगर कभी हमारे मक़ि्सद को जान लेता |
न यूँ आज ये हमारी मेहनत फ़ुज़ूल होती ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment