एक शोशा बस ज़रा महफ़िल में जा कर छोडिये |
आग एसी जल उठेगी फिर बुझाते दौडिए ||
टूटने के ही लिए तो दिल बना मेरा जनाब |
आइयेगा आप आ कर रोज़ इस को तोडिये ||
आम खाओ आप तो ले कर के चटखारे फ़क़त |
कितने हैं किसने लगाये पेड़ ये सब छोडिये ||
बस्तियां फूंकी अलग ओ खूँ बहाया अब तलक |
बैठ फ़ुरसत में ज़रा इसका गणित भी जोडिये ||
इन सियासी दावँ पेंचों ने छला अब तक बड़ा |
ठींकरा करनी का अपनी ओर के सर फोडिये ||
मुददआ दरअस्ल है जो बात उस पर ही करो |
मत घुमा कर बात का रुख़ असलियत से मोड़िये ||
तोड़ना आसान है क्यूँ सोचते हो तोड़ना |
तोड़ना ही है तो नफ़रत की दीवारें तोडिये ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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