Tuesday, 28 February 2012

एक शोशा


 एक शोशा बस ज़रा महफ़िल में जा कर छोडिये |
आग   एसी   जल  उठेगी  फिर   बुझाते   दौडिए ||

टूटने  के  ही  लिए  तो  दिल  बना   मेरा   जनाब |
आइयेगा  आप  आ  कर  रोज़  इस   को  तोडिये ||

आम  खाओ  आप  तो  ले  कर के चटखारे  फ़क़त |
कितने  हैं   किसने   लगाये  पेड़  ये  सब  छोडिये ||

बस्तियां  फूंकी  अलग  ओ  खूँ  बहाया अब तलक |
बैठ  फ़ुरसत  में  ज़रा  इसका  गणित  भी जोडिये ||

इन  सियासी  दावँ  पेंचों  ने  छला  अब  तक  बड़ा |
ठींकरा  करनी  का  अपनी  ओर  के  सर  फोडिये ||

मुददआ दरअस्ल  है  जो  बात  उस  पर  ही  करो |
मत घुमा कर बात का रुख़ असलियत से मोड़िये ||

तोड़ना   आसान   है   क्यूँ    सोचते   हो    तोड़ना |
तोड़ना   ही   है   तो  नफ़रत  की  दीवारें  तोडिये ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी    

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