क्या थे तब वो क्या अब हैं ?
दिल के रिश्ते ग़ायब हैं ||
छलनी है दिल ज़ख्मों से |
मुस्काते फिर भी सब हैं ||
हर सू पानी –पानी में |
जाने क्यूँ तिश्नालब हैं ?
मीठी बातों में लिपटे |
अपने -अपने मतलब हैं ||
क्या मिलिए उनसे जाकर ?
घर वो मिलते ही कब हैं ?
ठन्डे एहसासों के साथ |
आपस में मिलते सब हैं ||
फ़ुरसत हो तो आ जाना |
हम ही बेसब्रे कब हैं ?
डा० सुरेन्द्र सैनी
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