Sunday, 18 March 2012

मासूम सी बातें


भरम   पैदा   करें   मन  में   तेरी  मासूम   सी  बातें |
इन्हें मैं प्यार की समझू या समझू  ख़ाब   की  बातें ||

तुम्हारी  ही  तरफ़  से  अब  तो  बस कोई इशारा हो |
अरे  मैंने  तो  कब  की  सब  तुम्हारी  मान ली बातें ||

कभी समझा नहीं पाया मैं कुछ भी तुमको अच्छे से |
हमेशा   बीच   में    ही   तुमने   मेरी  काट  दी  बातें ||

हमें  अच्छी  नहीं लगती है ये आपस  की  तू -तू -मैं |
चलो   हम  चुप  रहेंगे   कीजिएगा   आप   ही  बातें ||

बड़ा ही मुख़्तसर है वक़्त क़ीमत को समझ इसकी |
न  कर  बेकार  की  बातें तू अब कर काम की बातें ||

हमारे  घर  के झगडे घर के अन्दर ही  रहें  अच्छा |
ज़माने  को  बता कर क्या मिलेगा  आपसी   बातें ||

बड़ा  अच्छा तुम्हारा दिन गया है आज तो ‘सैनी ’|
उन्होंने  फोन  पर  तो  आज तुमसे ख़ूब की बातें ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी          
   

Thursday, 15 March 2012

मेरे ख़िलाफ़


जो कुछ कहा ग़लत  कहा  गया  मेरे  ख़िलाफ़ |
वैसे   भी   वक़्त  इश्क़  में  रहा  मेरे  ख़िलाफ़ ||

थामी  जो  मैंने   रोशनी   की  हाथ  में  मशाल |
इक ख़ास तबक़ा  हो  गया  खड़ा मेरे  ख़िलाफ़ || 

दो  चार   दोस्तों  को  अपना  ग़म  बता  दिया |
तब   से   हरेक शख़्स   ही  हुआ मेरे  ख़िलाफ़ || 

आता  है  मुझको  याद  आज  वो  हसीन वक़्त |
जब  मैं  था  तेरे  साथ  तू  न  था मेरे  ख़िलाफ़ ||  

मुज़रिम  तो  अपना  आपने  बना  लिया  मुझे |
क्या कुछ सबूत आज तक मिला मेरे ख़िलाफ़ ||  

करते   रहे    भरोसा   आप   तो   रक़ीब    का |
उसने  कहा जो  मान  वो  लिया मेरे  ख़िलाफ़ ||  

करिये   न   आप   यूं   पहेलियों   में    गुफ़्तगू |
अब खुल के कीजिएगा तज़किरा मेरे ख़िलाफ़ ||   

आओ   समझ   ले  बैठ  कर  ख़याल   बाहमी |
जायज़  नहीं  है  बोलना   सदा  मेरे  ख़िलाफ़ ||  

ज़िद्दी  अगर  हैं  आप  तो  मैं  भी   बड़ा  हठी |
जो  जी  में आये कीजे फ़ैसला  मेरे ख़िलाफ़ ||   

आये  हैं  ज़िंदगी  में   एसे  पल   भी  बारहा |
अच्छा किया मगर हुआ  बुरा मेरे  ख़िलाफ़ ||  

सैनी को मिल रही है किस  कुसूर  की  सज़ा |
उसने कभी भी कुछ नहीं किया मेरे ख़िलाफ़ ||  

डा०सुरेन्द्र  सैनी   
  

Wednesday, 14 March 2012

आपकी ख़ातिर


न पीने की क़सम जब से उठा ली  आपकी ख़ातिर |
बड़ी मुश्किल में अपनी जान डालीआपकी ख़ातिर || 

कहीं  दामन  पे  कोई   हर्फ़   आजाये  न  बातों  से |
ज़बां  दाँतों  तले  हमने   दबाली  आपकी  ख़ातिर ||  

हमेशा   आपके   आगे   करूँ  औरों  की  अनदेखी |
तभी  तो  मुझको देते लोग गाली आपकी ख़ातिर ||  

अगरचे काम इतना है  कि फ़ुर्सत ही नहीं मिलती |
मगर   बैठा  मिलूंगा रोज़  ख़ाली आपकी  ख़ातिर ||   

रक़ीबों  का   हमें  डर था तो हमने छोड़   दी  धरती |
चलो  अब  चाँद पर दुन्या बसाली  आपकी ख़ातिर ||  

मुझे   दीवानगी    ने   इश्क़ की  बेहाल   कर  डाला |
लगूं मैं  आजकल  सबको  मवाली आपकी ख़ातिर ||  

गली में  जब  मेरी  आते  हो  झगडा लोग  करते  हैं |
कभी  ख़ंजर  कभी  चलती  दुनाली आपकी ख़ातिर ||  

सितम एसा न करना टूट कर इक दिन बिखर जाए |
नयी दिल में जो अब उम्मीद पाली आपकी ख़ातिर ||  

तरसता  हूँ   चले  आओ  सभी  रस्तें  खुले  घर  के |
सभी  रस्तों  पे आँखें  हैं  बिछाली आपकी  ख़ातिर ||  

तुम्हारी  सम्त जायेगी न अब तो एक भी फ़त |
सभी  सीने  से जो हमने लगाली आपकी  ख़ातिर ||   

किसी के दर पे माथा आज तक टेका नहीं लेकिन |
बनेगा सैनी हर दर पर सवाली  आप की  ख़ातिर ||  

डा० सुरेन्द्र  सैनी 
    

Tuesday, 13 March 2012

हाथ थामेगा


हाथ  थामेगा  वो  जिस   दम  आपका |
कुछ न कर पायेगा फिर ग़म आपका ||

आपके  एहसान   हम   पर  हैं  बहुत |
सामना    कैसे    करें   हम   आपका ||

गीत  गाती   सी   हवाएं    चल  पडी |
दे  रहा  एहसास   मौसिम  आपका ||

छोटे पड़ जाते सभी अलफ़ाज़ जब |
क्या करें हम ख़ैर-मक़दम आपका ||

जैसे  गिरता हो ज़मीं पर आबशार |
हुस्न एसा ही है  चमचम  आपका ||

धूप  में  मुरझा  न   जाए   ये  कहीं |
फूल  सा  चेहरा  मुलायम  आपका ||

रूठता    हूँ   तो   मनाने   में   मुझे |
वक़्त लगता है बहुत कम आपका ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Sunday, 11 March 2012

ज़िंदगी काट दी


सोते   हुए   ज़िंदगी   काट   दी |
खोते   हुए   ज़िंदगी   काट  दी ||

काँटे   सदा   दूसरों   के    लिए |
बोते    हुए   ज़िंदगी   काट  दी ||

देखा नहीं हँस के पल  एक  भी |
रोते   हुए    ज़िंदगी    काट  दी || 

इतने  किये  पाप   मैंने  जिन्हें |
ढ़ोते   हुए    ज़िंदगी   काट   दी || 

दामन  रहा  दाग़दार इस तरह |
धोते   हुए   ज़िंदगी   काट   दी ||   

कमज़ोर दिल और लाचार तन |
होते   हुए   ज़िंदगी   काट    दी || 

जागे   रहे    आप   मैंने   मगर |
सोते   हुए   ज़िंदगी   काट   दी || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Thursday, 8 March 2012

बैठा हो हुस्न


बैठा   हो   हुस्न   सामने   रानाइयाँ  लिए |
फिर तो ग़ज़ल  कहूंगा मैं गहराइयाँ लिए ||

आबाद सबके आशियाँ तो कब के  हो  गए |
मैं  जी  रहा  हूँ  आज  भी  तन्हाईयाँ  लिए ||

हालाकि उसने शान से सब को विदा  किया |
महफ़िल से उसकी मैं चला रुस्वाइयाँ लिए ||

तैयार   है   नहीं  कोई  सुनने  को  एक  भी |
मैं   लाख़   घूमता   फिरूं  सच्चाइयाँ  लिए ||

मिल जायेंगे हज़ार तुम्हे  झट  तमाशबीन |
निकलोगे जब भी राह में अंगडाइयां लिए ||

वो  सोचते हैं क्या मेरे बारे  में  क्या  पता |
मिलता रहा हूँ उनसे  मैं अच्छाइयां लिए ||

कुदरत  का  खेल  देखिये  होती नहीं  जुदा |
चलता  है  आदमी  सदा  परछाइयाँ  लिए ||

दिखने  में  तो  लगे  बड़ा सीधा सा आदमी |
मानी  हैं  उसकी  बात  के  ऊँचाइयाँ  लिए ||

इलज़ाम आप पर लगा तो लग गया जनाब |
अब  उम्र  भर  ही  घूमिये  अच्छाइयां लिए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी       

Sunday, 4 March 2012

नुस्ख़ा मेरा


नुस्ख़ा  मेरा  आप   ये  भी  आज़मा कर देखिये |
एक दिन के ही लिए बस घास खा  कर  देखिये ||

रिश्ते -नाते छीन  लेते हैं  कभी दिल का सुकून |
कुछ पलों को ही सही उन को भुला कर देखिये ||

जब  कभी  बेज़ार   हो जाए ज़माने  से ये दिल |
आप  फ़ौरन  ही  हमारे  पास  आ  कर  देखिये ||

कर रहा हो जब तुम्हे कोई मुसलसल  दरगुज़र |
मत  पड़ो  पीछे   उसी  के  दूर  जा  कर  देखिये ||

पेट  की  ताक़त  पता  चल  जायेगी सब आपके |
खा रहा जो एक मुफ़लिस वो  चबा  कर  देखिये ||

है  हरे  के  भी  सिवा  सावन के अंधों  कुछ  यहाँ |
आँख  से  ग़फ़लत   भरा  पर्दा  हटा  कर  देखिये ||

छोड़  देते  हो  हक़ारत   से  जिसे  तुम  देख  कर |
चार पल ही उस दलित के घर बिता  कर देखिये ||

कुछ कमी होगी कहीं तो  वो  पता  चल  जायेगी |
हो सके तो इस ग़ज़ल को गुनगुना  कर  देखिये ||

बेसबब  आती  नहीं  रिश्तों  में  तल्ख़ी   यूँ  कभी |
ख़ुद में भी अब आप कुछ बदलाव ला कर देखिये ||

राम   बन   कर   आइये   शबरी   बनूंगा  आपकी |
झाड़ियों  पर  कुछ  लगे  हैं  बेर  खा  कर   देखिये ||

आपकी ख़ातिर ही क्या अच्छा है सब के ही लिए |
आप जब भी  देखिये  बस  मुस्कुरा  कर  देखिये ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 


Thursday, 1 March 2012

पैदा कर


नहीं  कहता  हूँ  मैं  तुझसे  कि  रातों  रात  पैदा कर |
भले  ही  देर  हो  जाए   सुखन  में  बात    पैदा  कर ||

सुकूँ हासिल नहीं  होता  कभी  पड़  कर  फ़सादों में |
अगर कुछ कर सके तो अम्न के हालात  पैदा  कर ||

गुज़ारे   थे   कभी   जो   बैठ   कर   तेरी  पनाहों  में |
ज़रा फिर दिल लुभाने को वही  लम्हात   पैदा  कर ||

लगेगा वक़्त शायद और कुछ उड़ने में तुझको बस |
ज़मीं पे चलने की ख़ुद में अभी  औक़ात पैदा  कर ||

कभी गुमराह हो  जाएँ  न  देखो   क़ौम की  नस्लें |
अभी से इनके भीतर प्यार के जज़्बात  पैदा  कर ||

खटकते हैं ये कानों को  बहुत  ही  आज   के  नग़्मे |
सुरीली   तान  वाले  दिलकुशा  नग़्मात  पैदा  कर ||

किसी दिन मैं भी छू पाऊँ फ़लक की उस बलंदी को |
मेरे   मौला   मेरे  किरदार   में   वो  बात  पैदा  कर ||

गुनाहों   से   न   जिनका  वास्ता  कोई  हमेशा  हो |
हिफ़ाज़त जो करे सब की वो एसे  हाथ  पैदा  कर ||

दुआ मांगू  ख़ुदा तुझसे हमेशा  रात  हो  या  दिन |
हमेशा हुस्न को   उसकी  वफ़ा के साथ पैदा  कर ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी