Wednesday, 29 February 2012

उनके जो आगे


उनके  जो  आगे  अपनी  ये  दुआ क़ुबूल होती |
क़िस्मत पे क्यूँ हमारी गर्दिश  की  धूल  होती ||

कभी  सामने  किसी  के झुकता न  सर  हमारा |
ग़र   ज़िंदगी    हमारी   कुछ    बाउसूल   होती ||

ये नसीब बन के दुश्मन मेरे साथ ग़र न चलता |
मुझसे न बदहवासी  में  कोई   भी   भूल   होती ||

यही  आर्ज़ू    हमेशा   हर   सांस    में    रही   है |
मेरी ज़ात उनके जूड़े का महकता  फूल  होती  ||

वो अगर कभी हमारे मक़ि्सद को  जान लेता |
न  यूँ  आज  ये  हमारी मेहनत  फ़ुज़ूल  होती ||

डा० सुरेन्द्र सैनी 

Tuesday, 28 February 2012

एक शोशा


 एक शोशा बस ज़रा महफ़िल में जा कर छोडिये |
आग   एसी   जल  उठेगी  फिर   बुझाते   दौडिए ||

टूटने  के  ही  लिए  तो  दिल  बना   मेरा   जनाब |
आइयेगा  आप  आ  कर  रोज़  इस   को  तोडिये ||

आम  खाओ  आप  तो  ले  कर के चटखारे  फ़क़त |
कितने  हैं   किसने   लगाये  पेड़  ये  सब  छोडिये ||

बस्तियां  फूंकी  अलग  ओ  खूँ  बहाया अब तलक |
बैठ  फ़ुरसत  में  ज़रा  इसका  गणित  भी जोडिये ||

इन  सियासी  दावँ  पेंचों  ने  छला  अब  तक  बड़ा |
ठींकरा  करनी  का  अपनी  ओर  के  सर  फोडिये ||

मुददआ दरअस्ल  है  जो  बात  उस  पर  ही  करो |
मत घुमा कर बात का रुख़ असलियत से मोड़िये ||

तोड़ना   आसान   है   क्यूँ    सोचते   हो    तोड़ना |
तोड़ना   ही   है   तो  नफ़रत  की  दीवारें  तोडिये ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी    

Monday, 27 February 2012

क्या थे तब


क्या थे तब वो क्या अब हैं ?
दिल   के  रिश्ते  ग़ायब  हैं ||

छलनी  है  दिल ज़ख्मों  से |
मुस्काते  फिर  भी सब  हैं ||

हर  सू    पानी  –पानी  में |
जाने  क्यूँ   तिश्नालब  हैं  ?

मीठी    बातों   में    लिपटे |
अपने -अपने  मतलब  हैं ||

क्या मिलिए उनसे जाकर ?
घर  वो  मिलते  ही कब हैं ?

ठन्डे   एहसासों   के  साथ |
आपस  में  मिलते सब हैं ||

फ़ुरसत  हो तो आ जाना |
हम  ही  बेसब्रे  कब  हैं  ?

डा० सुरेन्द्र  सैनी